शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

खुदा से मिलन

                                                 खुदा से मिलन 

सुबह का वक़्त था।  मै अक्सर सुबह वक़्त होने पे उनके पास आ ही जाता था बाकि लोगो की तरह या युँ कहूँ  की मुझे भी उनके पास जा के अच्छा  लगता था।  लोग उन्हें साईं जी कह के पुकारते थे। पास गाँव के ही रहने वाले थे। मस्त फ़क़ीर थे वो। कब से है यहाँ पता नही पर मेरे हिसाब से 50 सालो के आस पास हो गए होंगे यहाँ।  आज जब में सुबह उनके दरबार  पहुंचा तो रोज की तरह कुछ लोग माथा टेक के उनके दरबार से जा रहे थे और कुछ वहां बैठे हुए थे मेने गेट पे जाते  ही  सर झुकाया और अंदर प्रवेश कर गया। पहले मेने गुरु महाराज को माथा टेका और फिर सामने जहाँ साईं जी बैठते थे वहां चल दिया । साईं जी बैठे थे और साथ में छ  लोग और बैठे बाते कर रहे थे। सामने बैठे नए बन्दे को जो की करतार सिंह था में एक नज़र में पहचान गया। करीबन दो साल बाद देखा था उसको । इंग्लैंड में रहता था। पास गाँव का ही रहने वाला था।  सुना था उसके बारे में की वहां अछा काम धाम है उसका।  उसको गए हुए तक़रीबन पांच साल हो गए थे। वो भी साईं जी के पास रोज आता था सेवा करने जब यहाँ था । एक रोज करतार सिंह कह बैठा महाराज में इंग्लैंड जाऊँगा और वहीँ कोई काम करुँगा । साईं जी कहने लगे ओए करतारा इधर क्या काम की कमी है , या इधर सब डांगर ही रहते है  और इंग्लैंड में ही इंसान रहते ह । करतार सिंह जो उस वक़्त 23 -24  साल का था कोई जवाब तो न दे पाया उनकी बात का पर बोला नही साईं जी बस मेरा दिल है  की इंग्लैंड ही रहु। साईं जी ने कह के टाल दिया की चल कोई नही देखेंगे। बात आई गई होगी और उन्होंने सोचा  की जवान लड़का है  भूल जायेगा कुछ टाइम बाद। पर करतार सिंह था की भूलने का नाम नही और अगले 6  महीने ये ही राग अलापता रहा तो एक दिन साईं जी ने कह दिया जा करतार सिंह तू इंग्लैंड जा। बस करतार सिंह उसके ठीक 3 महीने बाद इंग्लैंड था । जब पहली दफा वतन आया तो सबसे पहले साईं जी के दरबार पुहँचा  ।  आज भी वो अपने साईं जी के पास बैठा था । मै चुप बैठा था वैसे भी साईं जी के सामने कोई बेढंगी बात करे ये किसी की मजाल ही नही होती थी । करतार सिंह कहने लगा --" साईं जी मेरा दिल करता हा की में आपको इंग्लैंड घुमाऊं। साईं जी हंस के कहने लगे करतार सिंह इंग्लैंड मेरा देखा हुआ है कोई और देश बता जो मेने देखा न हो"।  हम सब एक दूसरे का मुँह देखने लगे क्योकि हम सब को ये अछे से पता था  की साईं जी अपने दरबार के अलावा  कभी कहिं नही गए तो इंग्लैंड कब देख लिया।  जब करतार सिंह हैरानी से देख ही रहा था की तभी साईं जी ने पूछ लिया अछा  ये हाईवे अपने दरबार से कितना दूर है । बोला "महराज 5 मिन्ट का रास्ता है ।  साईं जी "तो इंग्लैंड तो इस से भी कम दुरी पे है " । " तेरे पास मोबाइल तो होगा ही"। कहा जी महाराज है । बोले " तो तेरे उस अंग्रेज मित्र को फ़ोन लगा जिसके साथ तू अक्सर घूमने जाता है  शाम को झील पे वो अभी उसी झील पे है  और उस झील में कूल 18  नावे है और 3  में सवारी है  और 15  खाली है  पूछ तो ज़रा उस से। हम सभी अवाक् थे । करतार सिंह ने फ़ोन लगाया और पूछा तो सब वैसा ही था जो बताया था । करतार के साथ मेरी आँखों से भी अजीब खुशी  के आंसू  आ गये। उसने साईं जी के पैर पकड़ लिए।  कहने लगा महाराज मुझे नही जाना इंग्लैंड में तो वापिस आऊंगा।  बोले "में तेरे साथ वहां भी हु चिंता मत कर"। में सोच रहा था की और खुदा या भगवन कैसा होता ह और कहाँ मिलता है  सामने ही तो बैठा है  मेरा खुदा ।