भगवान और भूत
आज में प्रोफेसर साहब से मिला था। वैसे हर ह्फ्ते दो या तीन बार मिलना हो जाता हैं। पर आज मिलके जो बात हुई उसका थोड़ा विषय अलग था। प्रोफेसर रणजीत सिंह जी जो की मनोविज्ञान के प्रोफेसर हैं। बातों बातों में मैं पूछ बैठा क्या आप भूत को मानते हैं। उनका जवाब था "क्या तुम भगवन को मानते हो। मेने हाँ में सर हिलाया। तो कहने लगे फिर भूत को मानने में क्या परेशानी हैं। मेने कहा मैं कुछ समझा नही। तो कहने लगे की क्या तुमने कभी भगवान को देखा हैं ? मेने कहा नही। तो बोले की मानते किस वजह से हो। "जी वो बचपन से सुनते आये हैं और मानते आये हैं। तो कहने लगे की तो पूछना चाहिए था न भई कभी किसी से ये ही सवाल की जब देखा किसी ने नही तो मानते किस कारण से हो ? मै " जी.… वो तो एक एहसास हैं। " तो बोले भूत भी तो एक हवा ही हैं, अहसास ही तो हैं। बताने लगे की देखो दोनों ही आत्मा हैं, एक अछी और एक बुरी। मेने कहा थोड़ा खोल के समझाओ। बोले थोड़ा तार्किक रूप से सोचो। अगर देखे और समझे तो यहाँ चार ही तरह की आत्मा समझ आती हैं। पहली मनुष्य आत्मा जो अचे और बुरे दोनों काम करती हैं , दूसरी महान आत्मा -इंसान के रूप में वो पवित्र आत्मा जो महान काम ही करे जैसे साधू , संत, फ़क़ीर , तीसरी प्रेत आत्मा जो हर कोई सुनता आया हैं , और चौथी परम-आत्मा। इनमे से तीसरी और चौथी के बारे में सुना सब ने हैं पर कोई दावा नही कर सकता देखने का। क्योंकि चिकित्सा विज्ञानं के आधार पर आत्मा का कोई विवरण नही मिलता। कभी कभी हमें देखने को मिल जाता हैं की कोई इंसान जिसकी मानसिक हालत ठीक नही होती और कहता हैं मैं खुद मैं नही हूँ और किसी मरे हुए इंसान का नाम ले के बताता हैं की मैं वो हु तो हम मानते हैं की इसमें फलां बन्दे का भूत या आत्मा आ गई हैं , और डॉक्टर इसे मानसिक बीमारी कहते हैं। दूसरे पक्ष में जो महान संत हुए हैं हम उनके दर पे जा के आज भी मन्नत मांगते हैं और वो पूरी हो जाती हैं। से मरने वाले की आत्मा कहीं न जा के इधर ही हैं। तो भूत और भगवन दोनों ही आत्मा हैं एक पवित्र और दूसरी शैतान। जो दिखती किसी को नही सिर्फ एहसास ही होता हैं और अगर कोई इस बात का दावा भी करे की इन दोनों में से किसी को भी उसने देखा हैं तो वो क्या किसी को बताने लायक बचेगा ? बाकि दोनों को पूरी तरह से रहसय ही कहा जायेगा।
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