मंगलवार, 3 मार्च 2015

इज्जत का सर्टिफिकेट

  इज्जत का सर्टिफिकेट 
रात के १२ बज रहे थे की अचानक बाहर से गालियो की आवाज से मेरी नींद टूटी।वैसे तो ये आये दिन होता था पर अभी तीन दिन से लगातार हो रहा था। आवाज से में पहचान गया था ये कालू हैं। जो हमारे पड़ोस में रहता हैं और दारू पीने के अलावा कुछ नही करता। अपनी बीवी दुलारी को गालिया निकल रहा था। जो की धोबन का काम करती हैं। और कमा भी ठीक लेती हैं जिस से घर खर्च चल जाये।पूरी पाश कॉलोनी में इनकी अकेली दुकान हैं धोबी की, पर ये कालू उसकी कमाई को उसके पास रहने कहां देता हैं जो वो चार पैसे बचा सके। सारा पैसा तो दारु में उड़ा देता हैं। 

मैं मन ही मन बड़बड़ाता हुआ उठा "इनका आये दिन का ये ही नाटक हैं खुद तो ये हैं ही फालतू ,, औरों  की नींद और ख़राब करते हैं। में बहार खिड़की में से चिल्लाया   " क्या लगा के रखा हैं रे कालू ,, क्यू कॉलोनी के और लोगो की भी नींद ख़राब करता हैं फालतू ?? तुम्हे लड़ना हैं अंदर जा के लड़ो पर हमें तो चैन से सोने दे। " ये सब सुन वो अंदर खिसक लिया।   
सुबह पार्क से घूम के वापस आते वक़्त मेने उसकी बीवी को आवाज लगाई , " दुलारी , औ दुलारी , कालु…। 
मेरी आवाज सुन के दुलारी बाहर आई।  जी..  , साहब। क्या हुआ। 
" अरे भई क्या लगा के रखा हैं तुमने , क्यू रोज रात हम लोगो की नींद ख़राब करते हो।"
"साहब वो गलती हो गई में माफ़ी मांगती हु आपसे आगे से ऐसा नही होगा। " 
 "देखो भई  तुम लोगो को तो इज्जत की कुछ पड़ी नही हैं,, पर हमारा तो ध्यान रखा करो। एक तो नींद ख़राब और ऊपर से हमारे बच्चो पे गालियो का बुरा असर पड़ता हैं। "
दुलारी हाथ जोड़ते हुए बोली ,," आगे से मैं  ध्यान रखूंगी साहब , नही होगा। "

तीन चार दिन बाद बात आई गई हो गई। में रोज की तरह सुबह पार्क से घूम कर लौटा तो    
 टेबल के ऊपर बेटे के कॉलेज का नाम का लेटर देखा तो उठा लिया जानने के लिए की ये कब आया ? ये मेरे छोटे बेटे के कॉलेज से आया था। वो एक निजी कॉलेज में बी.टेक की दूसरी साल का विद्यार्थी हैं।  

मेने उसे आवाज लगाई " अरे अमित बेटा , ये तुम्हारे कॉलेज से लेटर कैसे आया हैं ?" 
कमरे से बहार आते हुए  "पापा ये मेने आर्ट कम्पटीशन में भाग लिया था , तो उसके लिए हैं। "
तब तक में लेटर पढ़ चूका था। जिसमे जितने वाले विद्यार्थी के माता-पीता को बुलावा था। 
"तो तुमने बताया नही , की तुम जीते हो और तुम्हे प्राइज मिलेगा और हमारा निमंत्रण आया हैं कॉलेज की तरफ से। "
"पापा वो.… ,, आपका ऑफिस होगा ना तो मेने नही बोला। "
"अरे तो क्या हैं उस दिन शनिवार हैं में ऑफिस से छुट्टी ले लूंगा ना। "

तब तक हमारी बाते सुन के बड़ा बेटा सुमित भी बहार आ गया था ,, जो की आई.आई.टी दिल्ली में फाइनल का स्टूडेंट हैं। और अभी छुट्टी ले के घर आया हुआ था। 

अमित ने उसे देखने के बाद मेरी तरफ देखते हुए कहा , "पापा आप रहने दो वहां सब के पापा महंगे पेंट कोट पहन के आएंगे और आप वो ही अपना सफ़ेद कुर्ता-पायजामा। मुझे अजीब फील होता हैं। "

मेने सुमित की तरफ देखते हुए कहा , " की अब तुम्हारा बाप होने का प्रूफ देने के लिए मुझे अपना पहनावा बदलना पड़ेगा क्या। " "हे भगवान ! क्या वक़्त आ गया हैं, की मेरी ही औलाद को मुझे बाप कहने में शर्म आने लगी हैं। "
मैं उठ के चलने लगा तो सुमित ने मेरे कंधे पे हाथ रखते हुए कहा , "पापा आप परेशान  मत होइए , में उसे समझता हुँ। "
मेरा ऑफिस में आज काम में मन नही लगा तो आधे वक़्त बाद छुट्टी ले के घर आ गया।  शाम तक सोचता रहा की क्या फर्क हैं मेरे और दुलारी की इज्जत में। उसका पति उसे दारु पी के गाली निकालता हैं और मेरा अपना बेटा पुरे होश में मुझे अपना बाप बताने में शर्मिन्दगी महसूस कर रहा हैं। क्या इसी दिन के लिए पाल पोष कर ,पढ़ा लिखा कर बड़ा किया ? दुलारी और मेरे में क्या फर्क हुआ ? दोनों ही बराबर हुए। दोनों में से किस के पास हुआ इज्जत का सर्टिफिकेट ???    
     

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें